Transformer kya hai.







 

 

 

 

Transformer क्या है; इसका भाग, प्रकार और कार्य सिद्धांत क्या है

होम थिएटर हो या एम्पलीफायर, स्टेबलाइजर हो या चार्जर, यूपीएस हो या इन्वर्टर लगभग सभी प्रकार के उपकरणों में आपने ट्रांसफार्मर लगा हुआ देखा होगा। हो सकता है कि आपने transformer के इस्तेमाल से अपना कुछ प्रोजेक्ट भी बनाया होगा और खराब ट्रांसफार्मर को बदलकर उसके जगह पर नया ट्रांसफार्मर भी लगाया होगा।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये ट्रांसफार्मर क्या है या परिणामित्र क्या है? ट्रांसफार्मर का काम क्या है?ट्रांसफार्मर कितने प्रकार का होता है? ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर आधारित है? ट्रांसफार्मर की संरचना कैसी होती है? उच्चाई ट्रांसफार्मर की कितनी होती है? ट्रांसफार्मर का प्रयोग कैसे किया जाता है? ट्रांसफार्मर का अविष्कार कब हुआ? ट्रांसफार्मर कैसे बनाये? ट्रांसफार्मर कैसे बनाया जाता है?


                 ट्रांसफार्मर क्या है और इसका काम क्या है?

ट्रांसफार्मर एक ऐसा इलेक्ट्रिकल यन्त्र है जो किसी भी वैल्यू के AC volt को उससे कम या ज्यादा किसी भी वैल्यू के ac volt में बदल सकता है। आसान शब्दों में कहें तो ट्रांसफार्मर एक ac volt converter यन्त्र है। ट्रांसफार्मर को हिंदी में परिणामित्र भी कहा जाता है अर्थात ट्रांसफार्मर का हिंदी नाम परिणामित्र होता है। इसके इस्तेमाल से निम्नलिखित काम किये जा सकते हैं।



  1. किसी भी वोल्ट के एसी करंट को उससे ज्यादा किसी भी वोल्ट के AC सप्लाई में बदला जा सकता है। या, ट्रांसफार्मर के द्वारा लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में बदला जाता है।
  2. किसी भी वोल्ट के ac सप्लाई को उससे कम किसी भी लो वाल्ट के AC current में बदला जा सकता है। या, ट्रांसफॉमर के द्वारा high volt को low volt में बदला जाता है।


क्या ट्रांसफार्मर DC सप्लाई पर भी काम करता है?

Transformer सिर्फ-और-सिर्फ AC पर ही काम कर सकता है। इसका इनपुट भी एसी होगा और आउटपुट भी एसी ही होगा। यदि आप इसका इस्तेमाल DC पर करना चाहेंगे तो इसके लिए सबसे पहले आपको DC supply को एक अलग सर्किट की सहायता से एसी में बदलना होगा और फिर इससे प्राप्त ac पर ही ट्रांसफार्मर को इनपुट सप्लाई देना होगा।

क्या ट्रांसफार्मर का आउटपुट DC भी हो सकता है?

नहीं, ट्रांसफार्मर सिर्फ एसी ही लेगा और एसी ही आउट भी करेगा। आप चाहे इसमें सीधे ही एसी सप्लाई दें या फिर डीसी को एसी में बदलकर दें, ये हमेशा एसी करंट ही आउट करेगा। आप चाहें तो इसके आउटपुट एसी को रेक्टीफायर सर्किट के द्वारा dc में बदल सकते हैं।

Transformer के भाग कितने होते हैं?

किसी भी ट्रांसफार्मर की संरचना को समझने के लिए सबसे पहले आपको ट्रांसफार्मर के भाग को समझना होगा। किसी भी ट्रांसफार्मर में मुख्यतः निम्न भाग होते हैं…

1) Transformer Coil: ट्रांसफार्मर में कोइल का क्या काम है?

ट्रांसफार्मर का क्वाइल ही उसका मुख्य भाग होता है। ट्रांसफार्मर के क्वाइल में ही इनपुट एसी सप्लाई दिया जाता है और क्वाइल से ही आउटपुट एसी सप्लाई प्राप्त भी किया जाता है। किसी भी transformer में मुख्य रूप से निम्नलिखित 2 प्रकार का कोइल इस्तेमाल किया जाता है।

a) Primary coil: ट्रांसफार्मर में प्राइमरी कोइल का क्या काम है?

ट्रांसफार्मर के जिस क्वाइल के दोनों तार पर इनपुट एसी करंट का सप्लाई देते हैं उसे प्राइमरी कोइल कहा जाता है। ट्रांसफार्मर में प्राइमरी क्वाइल का प्रतिरोध सबसे ज्यादा होता है। साथ ही प्राइमरी क्वाइल के बैंडिंग में इस्तेमाल किया गया तार भी पतला होता है।

b) Secondary coil: ट्रांसफार्मर में सेकेंडरी क्वाइल का क्या काम है?

ट्रांसफार्मर के जिस कोइल के दोनों तार से आउटपुट एसी करंट का सप्लाई प्राप्त किया जाता है उसे सेकेंडरी क्वाइल कहा जाता है। सेकेंडरी कोइल का प्रतिरोध प्राइमरी कोइल के प्रतिरोध की तुलना में कम होता है। साथ ही सेकेंडरी कोइल के बैंडिंग में इस्तेमाल किया गया तार भी प्राइमरी क्वाइल के अपेक्षा मोटा होता है।



ट्रांसफार्मर का एक coil इनपुट और दूसरा coil आउटपुट के लिए होता है लेकिन यदि आप ट्रांसफार्मर के बारे में पहली बार जान रहे हैं तो आपको ये बात जानकर बहुत ही हैरानी होगी कि इन दोनों क्वाइल का आपस में किसी भी प्रकार का कोई इलेक्ट्रिकल कनेक्शन नहीं होता है। कहने का तात्पर्य ये है कि इनके दोनों क्वाइल बिलकुल ही अलग-अलग होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई भी 2 मोबाइल फोन अलग होते हैं और उनका आपस में किसी भी तरह का कोई electrical connection नहीं होता है।
यदि आप ये बात पहली बार जान रहे हैं तो शायद आप भी आश्चर्यचकित हो सकते हैं। लेकिन आपको बता देना चाहूँगा कि इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है। सबसे पहले तो आपको ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत जान लेना चाहिए कि आखिर ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है। ट्रांसफार्मर किसी magic से काम नहीं करता, बल्कि ये चुम्बकीय सिद्धांत पर कार्य करता है।
उदाहरण के लिए, जिस तरह से 2 स्मार्टफोन का आपस में कोई इलेक्ट्रिकल कनेक्शन नहीं होता है लेकिन फिर भी वे आपस में hotspot और wi-fi कनेक्शन के माध्यम से आपस में कनेक्ट हो जाते हैं ठीक उसी तरह से एसी सप्लाई दिए जाने के बाद ट्रांसफार्मर के दोनों क्वाइल भी चुम्बकीय गुणों की वजह से आपस में बिना किसी इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के सिर्फ तरंग के माध्यम से जुड़ जाते हैं जिस वजह से उससे आउटपुट सप्लाई मिलने लगता है।

2) खोल या ढांचा

ट्रांसफार्मर के जिस खोखले, कुचालक और नर्म सतह पर क्वाइल की बैंडिंग की जाती है उसे खोल या ढांचा कहा जा सकता है।

3) Tissue paper: ट्रांसफार्मर में टिश्यू पेपर का क्या काम है?

खोखले सतह पर प्राइमरी कोइल की बैंडिंग पूरा हो जाने के बाद सेकेंडरी कोइल की वाइंडिंग शुरू करने से पहले primary coil के वाइंडिंग को टिश्यू पेपर से अच्छे से ढँक दिया जाता है ताकि दोनों कोइल किसी वजह से आपस में शार्ट न हो जाये। टिश्यू पेपर की खासियत ये होती है कि ट्रांसफार्मर और उसका क्वाइल कितना भी गर्म क्यों न हो जाए, लेकिन टिश्यू पेपर न तो जलता ही और न ही राख होता है।


प्राइमरी क्वाइल की वाइंडिंग पूरा होते ही उसे टिश्यू पेपर से अच्छी प्रकार से पैक कर दिया जाता है जिससे दोनों क्वाइल के बीच डायरेक्ट इलेक्ट्रिकल कनेक्शन नहीं हो पाता है। जब प्राइमरी क्वाइल को अच्छी प्रकार से पैक कर दिया जाता है तो फिर सेकेंडरी क्वाइल की वाइंडिंग शुरू की जाती है। फिर जब सेकेंडरी क्वाइल की वाइंडिंग भी पूरी हो जाती है तब सबसे अंत में एक बार फिर से इस क्वाइल को भी टिश्यू पेपर से अच्छी प्रकार से पैक कर दिया जाता है ताकि कोर और क्वाइल के बीच इलेक्ट्रिकल कनेक्शन न बने।

4) कोर: ट्रांसफार्मर में कोर का क्या काम है?

जब प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों क्वाइल की बैंडिंग पूरी हो जाती है तब उससे connection wire को निकालकर उसे पूरी तरह से pack कर दिया जाता है और तब वो इस्तेमाल करने के लायक हो जाता है। लेकिन यदि इसी हालत में कोइल में सप्लाई देकर इसका इस्तेमाल करेंगे तो कुछ ही देर में ये गर्म होकर जल जायेगा।
E & I type transformer core material
इससे बचने के लिए इसके खोखले जगह में नर्म लोहे का कोर लगाया जाता है जो कि सामान्य रूप से E और l टाइप का होता है। बहुत सारे कोर को जब transformer के खोखले भाग में अच्छे से टाइट करके भर दिया जाता है तब ट्रांसफार्मर पूरा हो जाता है और ये इस्तेमाल करने लायक बन जाता है। हालांकि विभिन्न तरह के transformer में विभिन्न तरह के कोर का इस्तेमाल किया जाता है।

ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं?

इस्तेमाल के आधार पर निम्नलिखित 3 प्रकार से ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण किया गया है। अर्थात transformer निम्नलिखित 3 प्रकार का होता है।

1) Step up transformer: स्टेप अप ट्रांसफार्मर इन हिंदी

जिस ट्रांसफार्मर से लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में बदला जाता है उसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर कहते हैं। स्टेप अप transformer के प्राइमरी कोइल की अपेक्षा सेकेंडरी क्वाइल में अधिक टार्न में वाइंडिंग की होती है। स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल अधिकांशतः बैटरी इन्वर्टर में किया जाता है जिस वजह से इसे इन्वर्टर ट्रांसफार्मर भी कहा जाता है।
                                   
Set up transformer in hindi

2) Step down transformer: स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर

जिस transformer के माध्यम से हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में बदला जाता है उसे स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर कहते हैं। स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर में सेकेंडरी क्वाइल की अपेक्षा प्राइमरी क्वाइल की वाइंडिंग में ज्यादा टर्न होते हैं। किसी भी बैटरी के चार्जर, होम थिएटर और एलिमिनेटर में स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल देखा जा सकता है।
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3) Auto Transformer: ऑटो ट्रांसफार्मर

जिस transformer से स्टेप अप ट्रांसफार्मर और स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर दोनों का काम एक साथ लिया जा सके उस transformer को ऑटो ट्रांसफार्मर कहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो ऑटो ट्रांसफार्मर से लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में भी बदला जा सकता है और हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में भी बदला जा सकता है।



ऑटो transformer में प्राइमरी क्वाइल और सेकेंडरी क्वाइल की जगह पर सिर्फ एक ही क्वाइल लगाया जाता है और उसी क्वाइल से बहुत सारा कनेक्शन वायर निकाल दिया जाता है। इतने तार में से एक तार को कॉमन रखा जाता है और बाकी के बचे हुए तार से ही इनपुट और आउटपुट के लिए बाकी का एक-एक कनेक्शन किया जाता है। किसी भी सर्किट के जरूरत के अनुसार ऑटो ट्रांसफार्मर में कॉमन, प्राइमरी और सेकेंडरी तार का चुनाव किया जाता है।
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किसी भी उपकरण में इनपुट और आउटपुट दोनों के लिए 2 -2 तार निकले होते हैं। लेकिन यदि किसी उपकरण में इनपुट और आउटपुट दोनों के ही एक-एक वायर को आपस में जोड़ कर तब बाकी का कनेक्शन किया जाये तो इसे ही कॉमन लेना कहते हैं। ट्रांसफार्मर में भी इनपुट और आउटपुट का एक-एक तार कॉमन होता है और बाकी के बचे एक-एक तार पर ही इनपुट और आउटपुट निर्भर करता है। ऑटो ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल स्टेबलाइजर और यूपीएस में देखा जा सकता है।

ट्रांसफार्मर में इनपुट और आउटपुट, वोल्टेज या करंट की लिमिट क्या होती है?

जिस प्रकार से किसी भी व्यक्ति के काम करने की एक क्षमता होती है ठीक उसी प्रकार से ट्रांसफार्मर के इनपुट और आउटपुट की भी एक क्षमता होती है। यदि आप किसी ट्रांसफार्मर के क्षमता से ज्यादा उस पर लोड दे देंगे तो वो जलकर खराब हो जायेगा।

ट्रांसफार्मर में इनपुट वोल्टेज की लिमिट क्या होती है?

किसी भी ट्रांसफार्मर में कितना वोल्ट इनपुट देना होता है और कितना वोल्ट आउटपुट लेना है इसी बात को ध्यान में रखकर तभी कोई transformer तैयार किया जाता है। आमतौर पर रिपेयरिंग के कामों में इस्तेमाल किए जानेवाले ट्रांसफार्मर में 220V एसी का सप्लाई दिया जाता है। लेकिन यदि आपको किसी ट्रांसफार्मर में 1000V का सप्लाई देना है तो आपको transformer बनाने वाले मैकेनिक से संपर्क करना होगा क्योंकि ऐसा ट्रांसफार्मर मार्केट में उपलब्ध नहीं होता है।

ट्रांसफार्मर में आउटपुट वोल्टेज की लिमिट क्या होती है?

ट्रांसफार्मर का आउटपुट वोल्टेज आपके जरूरत के अनुसार निर्भर करता है। यदि आपको 12V की जरूरत है तो आप 12 वोल्ट का transformer खरीदिये, यदि इससे अलग किसी वोल्ट की जरूरत है तो उतने वोल्ट का ही ट्रांसफार्मर खरीदिये जितने की आपको जरूरत हो।

ट्रांसफार्मर में आउटपुट करंट की क्या लिमिट है?

जिस प्रकार से आप अपने जरूरत के आउटपुट वोल्ट का ट्रांसफार्मर खरीद सकते हैं ठीक उसी प्रकार से आप अपने जरूरत के आउटपुट करंट के लिए भी transformer खरीद सकते हैं। यदि आपकी जरूरत सिर्फ 2 एम्पेयर करंट की है तो आप 2 एम्पेयर का ट्रांसफार्मर खरीद सकते हैं। लेकिन यदि आपकी जरूरत इससे ज्यादा या कम करंट की है तो उतने करंट का ही transformer खरीदें जितने की आपको जरूरत हो। यदि आप कम आउटपुट करंट वाले ट्रांसफार्मर पर ज्यादा करंट के सर्किट का लोड दे देंगे तो आपका ट्रांसफार्मर जल जाएगा।
सीधे शब्दों में कहें तो transformer की कोई लिमिट नहीं होती है। ये आप पर निर्भर करता है कि आपको कितने वोल्ट और कितने एम्पेयर के ट्रांसफार्मर की जरूरत है।

Transformer price in india: ट्रांसफार्मर की कीमत कितनी होती है?

किसी भी ट्रांसफार्मर की कीमत उसके आउटपुट करंट पर निर्भर करती है। transformer चाहे 12V आउटपुट का हो या 18V का या 24V का, यदि सभी का आउटपुट करंट बराबर एम्पेयर में है तो सभी का रेट भी लगभग बराबर ही होगा।

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                              रेक्टिफायर क्या है कैसे काम करता है और इसके प्रकार



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आपने  alternating current (AC) और direct current (DC) करंट के बारे में तो सुना होगा. क्या-क्या होता है और कहां पर इस्तेमाल होता है. एसी करंट हमारे घरों में आने वाली सप्लाई एसी करंट की होती है. जिससे कि हमारे घर के लगभग सभी उपकरण काम करते हैं. लेकिन हमारे घर में कुछ ऐसे उपकरण भी होते हैं जो कि डीसी सप्लाई पर काम करते हैं. जैसे कि आपका इनवर्टर इसमें आपको 12 वोल्ट की एक बैटरी देखने को मिलेगी जो की पूरी तरह से डीसी वोल्टेज पर काम करती है.
तो हमारे घर में आने वाले एसी करंट को हमें बैटरी के अनुसार डीसी बनाना पड़ता है इसी के लिए हम ट्रांसफार्मर और रेक्टिफायर का इस्तेमाल करते हैं. Rectifier definition  रेक्टिफायर की परिभाषा की बात करें तो एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जो की एसी करंट को डीसी में बदलने का काम करती है.रेक्टिफायर का इस्तेमाल कई सर्किट में किया जाता है. जहां पर भी हमें एसी से डीसी वोल्टेज बदलनी पड़ती है वहां पर हमें रेक्टिफायर का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा .ऐसी सप्लाई को डीसी में बदलने के लिए रेक्टिफायर डायोड का इस्तेमाल करता है या यूं कह सकते हैं कि रेक्टिफायर बनाने के लिए डायोड का इस्तेमाल किया जाता है. और रेक्टिफायर मुख्यतः 2 प्रकार के होते हैं जिनके बारे में आपको ज्यादा अच्छे से नीचे बताया गया है.

Rectifier के प्रकार

Type Of Rectifiers in Hindi ?  रेक्टिफायर को उसके काम करने के तरीके के अनुसार मुख्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया है. तीनों का काम करने का तरीका एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. इनका डायग्राम और इनका काम करने का तरीका आपको नीचे बताया गया है.

                                             Half wave rectifier

Half wave rectifier theory in hindi ?  यह रेक्टिफायर AC सप्लाई के सिर्फ half cycle को ही रेक्टिफायर कर पाता है. इस रेक्टिफायर में स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है. जिन्हें डायोड के साथ में जोड़ दिया जाता है. इस  Half wave rectifier  का सर्किट डायग्राम आपको नीचे दिया गया है .

                                 
                                

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Half wave bridge rectifier in hindi
                                      



सबसे पहले main सप्लाई वोल्टेज ट्रांसफार्मर को दी जाती है वहां से ट्रांसफार्मर अगर स्टेप डाउन इस्तेमाल किया है तो वह वोल्टेज को कम कर देगा और डाइट पर भेज देगा. यहां जो फोटो दिया गया है उसमें हमने स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर इसलिए दिखाया है क्योंकि सामान्यत है ट्रांसफार्मर रेक्टिफायर के लिए वोल्टेज को कम ही करता है. चाहे वह एक साधारण बैटरी चार्जर हो या फिर आपको उससे कोई उपकरण चलाना हो. इस रेक्टिफायर में सिर्फ एक डायोड होती है जो कि ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग के ऊपर सीरीज में जुड़ी होती है. और यह डायोड reverse bias current को रोक लेती है . इसीलिए यह सिर्फ Half wave को पास होने देती है इसीलिए इस रेक्टिफायर को Half wave rectifier कहा जाता है.

Working of Half Wave Rectifier 

जब रेक्टिफायर पर ट्रांसफार्मर द्वारा वोल्टेज दी जाती है तो वह पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों साइकल होते हैं लेकिन यह रेक्टिफायर डायोड के कारण सिर्फ positive half cycles को ही आगे जाने देता है. और नेगेटिव half cycles को रोक लेता है.
क्योंकि रेक्टिफायर में लगी हुई डायोड Half पॉजिटिव cycle आने पर forward bias स्थिति में हो जाएगी और उस cycle को पास कर देगी . लेकिन जैसे ही डायोड पर Half नेगेटिव Cycle आएगा यह reverse bias स्थिति में आ जाएगी और उस Half नेगेटिव Cycle को पास नहीं करेगी.

                                      Full Wave Rectifier

फुल वेव रेक्टिफायर Input वोल्टेज waveform के positive और negative दोनों cycles को रेक्टिफायर करता है. इस रेक्टिफायर की आउटपुट half wave rectifier से कहीं ज्यादा होती है. और इसके आउटपुट में AC components इनपुट की बजाए बहुत कम इस्तेमाल होते हैं.फुल वेव रेक्टिफायर को आगे दो श्रेणियों में बांटा गया है .
  1. Center Tapped Full Wave Rectifier
  2. Full Wave Bridge Rectifier



                         Center Tapped Full Wave Rectifier

Center tapped full wave rectifier में 2 डायोड का इस्तेमाल किया जाता है. और यह डायोड center tapped ट्रांसफार्मर के साथ में जुड़ी होती है जैसा कि आपको नीचे सर्किट डायग्राम में दिखाया गया है . दोनों डायोड के पॉजिटिव टर्मिनल ट्रांसफार्मर के दोनों छोर पर जुड़े होते हैं. और Center tap टर्मिनल नेगेटिव होता है जिसे सीधा Load के साथ में जुड़ जाता है.

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Center Tapped Full Wave Rectifier

ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग पर Ac वोल्टेज दी जाती है. और ट्रांसफार्मर की दूसरी बाइंडिंग पर तो डायोड Connected होती है.क्योंकि half वेव रेक्टिफायर में एक डायोड सिर्फ half cycle को ही rectify कर पाता था तो दूसरे half cycle को rectify करने के लिए यहां पर दूसरा डायोड लगाया गया है.तो जब डायोड D1 forward bias स्थिति में होगा तो यह करंट को आगे जाने देगा और उस समय डायोड D2 reverse biased स्थिति में होगा और वह करंट को आगे नहीं जाने देगा.
तो इस तरह half cycle Rectify हो जाता है. और जब डायोड D2 forward bias स्थिति में होगा तो यह करंट को आगे जाने देगा और उस समय डायोड D1 reverse biased स्थिति में होगा और वह करंट को आगे नहीं जाने देगा. तो इस तरह दूसरा half cycle भी Rectify हो जाता है और हमें दोनों डायोड के कारण आउटपुट में Full Wave मिल जाती हैं.
लेकिन इसके द्वारा rectified आउटपुट शुद्ध नहीं होती इसे और शुद्ध करने के लिए dc component का इस्तेमाल किया जाता है.

                                   Full Wave Bridge Rectifier

  ब्रिज रेक्टिफायर में डायोड को ब्रिज के रूप में बनाया जाता है और यह full wave rectification के लिए इस्तेमाल किया जाता है और यह बहुत सस्ता होता है इसीलिए यह इलेक्ट्रॉनिक्स के बहुत सारे उपकरण में इस्तेमाल किया जाता है.

            Working of Bridge Rectifier

यह रेक्टिफायर दिखने में जितना मुश्किल लगता है यह उतना ही आसान है. एक बार समझ आने के बाद में आप इसे कभी नहीं भूलोगे. इसका सर्किट डायग्राम आपको ऊपर दिया गया है. जहां पर आप डायोड के कनेक्शन देख सकते हैं कि कैसे डायोड को जोड़कर bridge बनाया गया है. ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को points 1और 3 से जोड़ा गया है और RLoad को points 2 और 4 से जोड़ा गया है.
AC वोल्टेज का पहला half cycle आने पर D1 और D4 डायोड forward biase स्थिति में आ जाएंगे और यह करंट को जाने देंगे. लेकिन D2 और D3 डायोड उस समय reverse base स्थिति में रहेंगे तो यह करंट को आगे नहीं जाने देंगे. दूसरे half cycle आने पर D2 और D3 डायोड forward biase स्थिति में आ जाएंगे और यह करंट को जाने देंगे. लेकिन D1 और D4 डायोड उस समय reverse biase स्थिति में रहेंगे तो यह करंट को आगे नहीं जाने   देंगे.


                                        Image result for Working of Bridge Rectifier

                                             



तो इस प्रकार यह रेक्टिफायर दोनों half cycle को rectifies करेगा. और आउटपुट में हमें Full Wave के आउटपुट मिलेगी.

Transistor kya hai.

      Transistors क्या है कैसे काम करता है

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Transistor

ट्रांजिस्टर एक Semiconductor (अर्धचालक) डिवाइस है जो कि किसी भी Electronic Signals को Amply या Switch करने के काम आता है. यह (Semiconductor ) अर्धचालक पदार्थ से बना होता है जिसे बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जेर्मेनियम का प्रयोग
किया जाता हैं।इसके 3 टर्मिनल होते हैं .जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं .इन टर्मिनल को base, collector और Emitter कहा जाता है.
ट्रांजिस्टर कई प्रकार के होते हैं और सभी अलग-अलग तरह से काम करते हैं तो आज की इस पोस्ट में आपको बताया जाएगा कि n-p-n ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है. ट्रांजिस्टर कैसे काम करता है pnp ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है .लेकिन इससे पहले हम जानेंगे की ट्रांजिस्टर किसने और कैसे बनाया और इस का आविष्कार करने वाला कौन था आखिर किसने ट्रांजिस्टर का आविष्कार करके इलेक्ट्रॉनिक की पूरी दुनिया में एक क्रांति ला दी.

Transistors का अविष्कार कब और किसने किया

सबसे पहले एक जर्मन भौतिक विज्ञानी Julius Edgar Lilienfeld ने 1925 में  field-effect transistor (FET)  के लिए कनाडा में patent के लिए प्रार्थना-पत्र दिया लेकिन किसी तरह के सबूत ना होने के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक दुनिया को बदलकर रख देने वाले ट्रांजिस्टर का आविष्कार John Bardeen, Walter Brattain और William Shockley ने 1947 में Bell Labs में किया था.

Transistors Classification and Types in Hindi

जैसा कि आप जानते हैं ट्रांजिस्टर में इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव किया तो इसका जितना बड़ा बदलाव था उसी तरह इसे बहुत ज्यादा श्रेणियों में बांटा गया नीचे आपको एक डायग्राम दिया गया है जिसकी मदद से आप इसे ज्यादा आसानी से समझ पाएंगे.
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ट्रांजिस्टर के आविष्कार से पहले वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल वैक्यूम ट्यूब की जगह किया जा रहा है क्योंकि ट्रांजिस्टर आकार में बहुत मोटे और वजन में बहुत हल्के होते हैं और इन्हें ऑपरेट होने के लिए बहुत ही कम पावर की जरुरत पड़ती है.इसीलिए ट्रांजिस्टर बहुत सारे उपकरण में इस्तेमाल किया जाता है जैसे एम्पलीफायर, स्विचन सर्किट, ओसीलेटरर्स और भी लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
जैसा कि ऊपर आपका फोटो में ट्रांजिस्टर के कई प्रकार दिखाए गए हैं लेकिन इसके मुख्य दो ही प्रकार होते हैं :
  1. N-P-N
  2. P-N-P

n-p-n ट्रांजिस्टर क्या है

जब P प्रकार के पदार्थ की परत को दो N प्रकार के पदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें n-p-n ट्रांजिस्टर मिलता है. इसमें इलेक्ट्रॉनों Base terminal के ज़रिये collector से emitter की ओर बहते है .
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p-n-p ट्रांजिस्टर क्या है

 

जब N प्रकार के पदार्थ की परत को दो P प्रकार के पदार्थ की परतों के बीच में लगाया जाता है तो हमें p-n-p ट्रांजिस्टर मिलता है.
                         

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 यह ट्रांजिस्टर के दोनों प्रकार देखने में तो एक जैसे लगते हैं लेकिन दिन में सिर्फ जो Emitter पर तीर का निशान है उसमें फर्क है PNP में यह निशान अंदर की तरफ है और NPN में यह निशान बाहर की तरफ है तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कौन से ट्रांजिस्टर में तीर का निशान किस तरफ है.इसे याद करने की एक बहुत आसान सी ट्रिक है .

NPN – ना पकड़ ना :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म ना पकड़ ना की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ो मत जाने दो तो इसमें तीर का निशान बाहर की तरफ जा रहा है.
PNP – पकड़ ना पकड़ :- यहां पर हम इनकी फुल फॉर्म पकड़ ना पकड़ की तरह इस्तेमाल करेंगे इसका मतलब पकड़ो लो  तो इसमें तीर का निशान अन्दर तरफ रह जाता है.
तो ऐसे आप इसे याद रख सकते हैं और ट्रांजिस्टर के 3 टर्मिनल होते हैं .जो इसे किसी दूसरे सर्किट से जोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं .इन टर्मिनल को Base, Collector और Emitter कहा जाता है.

FET (Field Effect Transistor)

FET  ट्रांजिस्टर का दूसरा टाइप है.और इसमें भी 3 टर्मिनल होते हैं. जिसे  Gate (G), Drain (D) और Source (S) कहते है .और इसे भी आगे और कैटेगरी में बांटा गया है. Junction Field Effect transistors (JFET) और MOSFET transistors. इन्हें भी आगे और classified किया गया है . JFET को Depletion mode में और MOSFET को Depletion mode और Enhancement mode में classified किया गया है. और इन्हें भी इन्हें भी आगे N-channel और P-channel में classified किया गया है.

Small Signal Transistors


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Small Signal  ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल सिग्नल को Amplify करने के साथ-साथ Switching के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.सामान्यत: यह ट्रांजिस्टर हमें Market में PNP और NPN रूप में मिलता है .इस ट्रांजिस्टर के नाम से ही पता लग रहा है कि यह ट्रांजिस्टर वोल्टेज और करंट को थोड़ा सा Amplify लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस ट्रांजिस्टर का उपयोग लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में किया जाता है जैसे कि LED diode driver, Relay driver, Audio mute function, Timer circuits, Infrared diode amplifier इत्यादि .

Small Switching Transistors

इस ट्रांजिस्टर का प्राइमरी काम किसी भी सिग्नल को स्विच करना है उसके बाद में इसका काम Amplify का है. मतलब इस ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल ज्यादातर सिग्नल को स्विच करने के लिए ही किया जाता है. यह भी आपको मार्केट में एन पी एन और पी एन पी रूप में मिलता है.

Power Transistors

ऐसे ट्रांजिस्टर जो हाई पावर को Amplify करते हैं और हाई पावर की सप्लाई देते हैं उन्हें पावर ट्रांजिस्टर कहते हैं. इस तरह के ट्रांजिस्टर PNP ,NPN और Darlington transistors के रूप में मिलते हैं . इसमें collector के current की values range 1 से  100A तक होती है . और इसकी operating frequency की range 1 से 100MHz तक होती है .

Transformer kya hai.

        Transformer क्या है; इसका भाग, प्रकार और कार्य सिद्धांत क्या है                                                  ...